जागिए ब्रजराज कुँवर, कमल-कुसुम फूले। कुमुद-बृंद संकुचित भए, भृंग लता भूले। तमचुर खग-रोर सुनहु, बोलत बनराई। राँभति गो खरिकनि मैं, बछरा हित धाई। विधु मलीन रवि प्रकास गावत नर नारी। सूर स्याम प्रात उठौ, अंबुज-कर-धारी।।
हिंदी समय में सूरदास की रचनाएँ